!! श्री गणेश चालीसा !!

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!! श्री गणेश चालीसा !!

जय गणपति सद्गुण सदन, कविवर बदन कृपाल !
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल !!

चौपाई-

जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभ काजू !

जै गजबदन सदन सुखदाता , विश्व विनायक बुद्धि विधाता !!

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन , तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन !

रााजत मणि मुक्तन उर माला , स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला !!

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं , मोदक भोग सुगन्धित फूलं !

सुन्दर पीताम्बर तन साजित , चरण पादुका मुनि मन राजित !!

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता , गौरी ललन विश्वण्विधाता !

ऋद्धि सिद्धि तव चँवर सुधारे , मूषक वाहन सोहत द्वारे !!

कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी , अति शुचि पावन मंगल कारी !

एक समय गिरिराज कुमारी, पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी !!

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा , तब पहुँच्यो तुम धरि द्विज रूपा !

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी , बहु विधि सेवा करी तुम्हारी !!

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा , मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा !

मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला , बिना गर्भ धारण यहि काला !!

गणनायक गुण ज्ञान निधाना , पूजित प्रथम रूप भगवाना !

अस कहि अन्तर्ध्यान रूप ह्वै , पलना पर बालक स्वरूप ह्वै !!

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना , लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना !

सकल मगन सुख मंगल गावहिं , नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं !!

शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं , सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं !

लखि अति आनन्द मंगल साजा , देखन भी आये शनि राजा !!

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं , बालक देखन चाहत नाहीं !

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो , उत्सव मोर न शनि तुहि भायो !!

कहन लगे शनि मन सकुचाई , का करिहौ शिशु मोहि दिखाई !

नहिं विश्वास उमा कर भयऊ , शनि सों बालक देखन कह्यऊ !!

पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा , बालक शिर इड़ि गयो आकाशा !

गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी , सो दुख दशा गयो नहिं वरणी !!

हाहाकार मच्यो कैलाशा , शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा !

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाये , काटि चक्र सो गज शिर लाये !!

बालक के धड़ ऊपर धारयो , प्राण मंत्र पढ़ शंकर डारयो !

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे , प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे !!

बुद्धि परीक्शा जब शिव कीन्हा , पृथ्वी की प्रदक्शिणा लीन्हा !

चले षडानन भरमि भुलाई , रची बैठ तुम बुद्धि उपाई !!

चरण मातुण्पितु के धर लीन्हें , तिनके सात प्रदक्शिण कीन्हें !

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे , नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे !!

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई , शेष सहस मुख सकै न गाई !

मैं मति हीन मलीन दुखारी , करहुँ कौन बिधि विनय तुम्हारी !!

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा , लख प्रयाग ककरा दुर्वासा !

अब प्रभु दया दीन पर कीजै , अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै !!

दोहा-

श्री गणेश यह चालीसा , पाठ करें धर ध्यान !
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सनमान !!

संवत् अपन सहस्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश !
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश !!

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