दलित, पिछड़ों के अधिकारों और राजनैतिक चेतना के चिंगारी थे मान्यवर कांशीराम साहब !

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दलित, पिछड़ों के अधिकारों और राजनैतिक चेतना के चिंगारी थे मान्यवर कांशीराम साहब !


बस्ती- विकास क्षेत्र साऊंघाट के विभिन्न ग्राम पंचायतों के अम्बेडकर पार्को में मान्यवर कांशीराम साहब की 18 वॉ परिनिर्वाण जयंती धूमधाम से मनाई गया। जिसमे बहुजन समाज पार्टी एवं भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों द्वारा मान्यवर कांशीराम साहब के चित्र पर पुष्प अर्पित कर नमन किया गया। बसपा व भीम आर्मी के पदाधिकारियों द्वारा इनके जीवन एवं योगदान पर विस्तार से चर्चा किया गया। क्षेत्र के गंधार, सिसवारी, भादी खुर्द, बौद्ध मंदिर पड़िया, हड़िया, रविदास मंदिर अमौली, नरियॉव, महुँड़र, बॉगडिह एवं अन्य स्थानों पर मनाया गया।
कुर्थिया में लेखक व समाजसेवी सर्वेश राव अम्बेडकर एवं रामशंकर आजाद ने मान्यवर कांशीराम साहब के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनका जन्म 15 मार्च 1934 ई को ग्राम खवासपुर, जिला रोपड़ पंजाब के एक रविदसिया (सिख) परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम बिसन कौर और पिता का नाम हरीसिंह था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में तथा स्नातक शिक्षा ( रोपड़ राजकीय कालेज) पंजाब विश्वविद्यालय से हुई थी। 1957 में उन्होंने भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग में नौकरी किये बाद में वहां से इस्तीफा देकर सन् 1958 ई में कांशीराम जी पूना शहर महाराष्ट्र में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए। डीआरडीओ पूना शहर में नौकरी के दौरान सन् 1964 में एक घटना घटित हुई। जिसमें महाराष्ट्र सरकार ने डॉ. भीम राव अम्बेडकर जयन्ती और तथागत भगवान बुद्ध जयन्ती की छुट्टियाँ समाप्त कर दिया था। राजस्थानी वाल्मीकि जाति के कट्टर अम्बेडकरवादी दीना भाना जिन्होंने छुट्टियाँ खतम करने का विरोध किया। जिसके कारण उन्हें नौकरी से सस्पेंड कर दिया गया। दीना भाना जी बहुत दुःखी हुए। यह बात कांशीराम जी को पता चली तो वे दीना भाना से मिलकर पूरी जानकारी लिए तब उन्होंने बताया की अम्बेडकर साहब मेरे समाज के लिए भगवान से बढ़ कर हैं। इसलिए उनकी जयन्ती मनाने के लिए छुट्टी मांग रहा हूँ। कांशीराम जी ने पूछा कि वे भगवान से बढ़ कर कैसे। तब दीना भाना ने सवाल किया, आप को नौकरी कैसे मिली? आप इस पद पर कैसे पहुँचे? कांशीराम साहेब ने कहा मैंने पढ़ा लिखा, डिग्री हासिल की तब इस पद पर पहुँचा हूं। फिर दीना भाना ने कहा क्या आप ये नहीं जानते कि आप बाबा साहेब के द्वारा दिलवाए आरक्षण की वजह से यहां तक पहुंचे हो। जब कांशीराम जी को एहसास हुआ तब बाबा साहेब के बारे में विस्तृत जानकारी चाही। तब दीना भाना ने बाबा साहेब द्वारा लिखित पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ कास्ट कांशीराम जी को दी। जिसे कांशीराम ने लगातार छः बार पढ़ी। बाबा साहब की इस पुस्तक को पढ़ने के बाद कांशीराम को जीवन भर का काम दे दिया है। उसके साथ ही संकल्पित होकर नौकरी से त्याग पत्र दे दिया और कहा कि मैं छुट्टी न देने वाली सरकार की ही छुट्टी कर देना चाहता हूँ। उन्होंने ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। कांशीराम साहब सबसे पहले बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर द्वारा स्थापित रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के सक्रिय सदस्य बनें। कांशीराम जी ने ऐसा मार्ग चुना जिसके नेता एवं कार्यकर्ता स्वयं थे। कांशीराम जी ने बहुजन समाज बनाने के लिए विशिष्ट समाज सुधारक जो भारतीय मूलनिवासी बहुजन समाज के परिवारों में पैदा हुए थे। जिन्होंने मनुवादी सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलन चलाया था जिसमें तथागत गौतम बुद्ध, सन्त शिरोमणि गुरु रविदास, सद्गुरु कबीर साहेब, गुरु घासीदास, गुरू नारायणा, धरती पुत्र बिरसा मुंडा, पेरियार ईवी रामास्वामी नायकर, महात्मा जोतिबा राव फुले, राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज, सन्त गाडगे बाबा और बाबा साहब डॉ आम्बेडकर इनके आन्दोलन को पुर्नजीवित कर अपने मिशन को सामाजिक विस्तार देने की योजना बनाई और सफल रहें। अमौली में डॉ० दिनकर व गंधार में अरूण राज भारतीय ने कहा कि कांशीराम जी शासन सत्ता को ‘मास्टर चाबी’ कहते थे। वे उसे साध्य नहीं साधन मानते थे। जिससे ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ के साध्य को प्राप्त किया जा सके। राजसत्ता की चाबी पाने के लिए कांशीराम जी ने समय अंतराल योजनाबद्ध तरीके से मुख्य तीन संगठनों की स्थापना की थी। बामसेफ की स्थापना, डीएस 4 की स्थापना एवं 14 अप्रैल 1984 को बाबा साहब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी के जन्मदिवस पर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना कर राजसत्ता की चाबी पर कब्जा करना उददेश्य था। मूलचन्द आजाद ने कहा कि 1991में उप्र के इटावा से 11वीं लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार 1996 में होशियारपुर पंजाब से चुनाव जीत कर संसद में पहुँचे थे। बाबा साहव के मिशन को पुरा करने के लिए 2001में बहन कु मायावती को सार्वजनिक रूप से घोषणा करके अपना उत्तराधिकारी बनाया। जो उप्र की चार-चार बार मुख्यमंत्री बन सत्ता की चाभी पर कब्जा किया। अन्त में कहा कि भारत में अगर अम्बेडकरवाद जिन्दा है, तो इसका पूरा श्रेय सिर्फ मान्यवर कांशीराम साहब को ही जाता है।
इस अवसर पर शिवनरायन, शिवपूजन, रामधनी, रामफेर गौतम, शैलेन्द्र गौतम, भगवान दास, अभिषेक भारती, रामशंकर, पुंडरीकॉक्ष राव, अजय सिंह गौतम सहित अनेक लोग मौजूद रहें।

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